आज के समय भगत सिंह

आख़िर आज मैंने भी ब्लॉग की दुनिया से अपना नाता जोड़ लिया. इसका सारा श्रेय मेरे मित्र अनुपम को जाता हैं जिसने मुझे हिन्दी में यह ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया. अब देखता हूँ की मैं अपने इस प्रयास में कहाँ तक सफल हो पाता हूँ. अब मेरे सामने ये समस्या आई की अपनी प्रथम प्रविषटी के लिए किस विषय को चुनाव करूँ. काफी मंथन के बाद मैंने निर्णय लिया कि क्यों न मैं सबसे पहले अपने आदर्श “शहीद भगत सिंह” के बारे में लिखूं .

वैसे भी इस वर्ष हम भगत सिंह का जन्मशती वर्ष मना रहे हैं. लेकिन यह बात देख कर अत्यन्त निराशा हुई कि एक-दो कर्यकर्मो को छोड़ कर क्रांति का यह महानायक आज पूरी तरह विस्मर्त कर दिया गया हैं. वैसे भी सरकारी स्तर पर भारत कि तथाकथित लोकतात्रिंक सरकार का हमेशा भगत सिंह, सुभाष जैसे महानायाको से दूरी बनाये रखने का प्रयास  रहा हैं. यह बात और हैं कि ये  क्रांति के अगुआ हमेशा लोगो के दिलो में जिंदा रहे. वैसे भी स्वंत्रता आन्दोलन में एक मत (कांग्रेस) को ज्यादा महत्व मिला और जो सत्ता में होता हैं उसी का इतिहास ज्यादा गाया बजाया जाता हैं.  आज जरुरत इस बात पर मंथन करने की हैं कि क्या भगत सिंह के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके समय में थे. आज भारत को आजाद हुए ६० वर्ष बीत चुके हैं लेकिन मुझे नही लगता कि आम आदमी कि दुश्वारिया कम हुई हैं. पहले अंग्रेज सत्ता में थे अब अपने ही लोग गद्दी पर काबिज होकर जनता का शोषण कर रहे हैं. आज भी पुलिस का वही आतंक हैं. प्रचलित व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने वाले को आतंकवादी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया जाता हैं. धर्म के उन्माद में भाई भाई का गला काट रहा हैं और राजनितिक पार्टिया अंग्रेजो कि “फूट डालो राज करो ” कि नीति का अनुसरण करते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही हैं. कुछ भी तो नही बदला हैं. किसान मजदूर अब भी बेहाल हैं. अब साहूकार की जगह बैंक उन्हें कर्ज के मकड़जाल में फंसाकर उन्हें मौत को गले लगाने को विवश कर रहे हैं. सच तो यह हैं कि कुछ भी नही बदला हैं केवल ब्रिटिश राज के द्वारा सत्ता का हस्तांतरण कुछ प्रभावशाली लोगो के हाथ में हुआ हैं जो आगे भी उन्ही के मॉडल का अनुसरण करके उनके हितों कि पूर्ति कर  सके. भगत सिंह व्यवस्था में ऐसा बदलाव चाहते थे जहाँ आम आदमी की आवाज़ सुनी जा सके.  आज देश में पनपती सांप्रदायिक ताकतों की वजह से भगत सिंह बहुत प्रासंगिक हो गए हैं. आज अगर भगत सिंह होते तो सबसे पहले इन सांप्रदायिक और जातिवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने वाले लोगों का विरोध करते. भगत सिंह ने एक लेख “मैं नास्तिक क्यों हूँ ” को लिख कर धर्म और ईश्वर के बारे में अपना मत प्रगट किया. उन्होने लिखा हैं कि निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक होता  है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी. यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना. इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है.

आज भारत वर्ष में पूंजीवादी शक्तिया हावी हैं. इसकी वजह से अमीरी-गरीबी के बीच की खाई चौडी होती जा रही हैं. आम आदमी सरकार की तथाकथित उदारीकरण नीतियों के कारण आज विभ्रम की स्थिति में हैं. देश के होनहार युवक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए टेक्नो कुली बन कर रह  गए हैं. किसान मजदूर की स्थिति अब पहले से भी बदतर हो गई हैं. अब वह इस चकाचोंध में ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करता हैं. वैसे भी उदारीकरण नीतियों के कारण जिन तकनीकी दक्ष पेशेवर लोगो के पास धन आया हैं वह भी घूम फिरकर इन्  बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जेब में जा रहा हैं क्योंकि ये कंपनिया मासिक किस्तों में भुगतान आदि का मकड़जाल बुनकर आज के  इस  नव्धनादय वर्ग  को अपने उत्पाद खरीदने के लिए विवश कर देती हैं. भगत सिंह पहले ऐसे भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने तर्क दिया था कि साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद एक पूरी व्यवस्था है. इनकी यह सोच बनने का सबसे बड़ा कारण रूस की क्रांति और समाजवादी विचार धारा थी . उन्होंने साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को ख़त्म करने की बात कही थी. मार्क्सवाद पर आधारित लेख- लेटर टू यंग पॉलिटिकल वर्कर्स में उन्होंने युवाओं को संबोधित किया था. उन्होंने आधुनिक-वैज्ञानिक समाजवाद की बात की थी.

शहीद भगत सिंह ने कहा था कि हम नौजवान हैं और अपनी जबावदेही जानते हैं. लेकिन जब हमारे देश को आज भगत सिंह की इतनी जरूरत है तो हम क्यों न भगत सिह के सपनों को साकार करने की ईमानदार कोशिश करें. हम सभी भारतवासी बखूबी जानते है कि हमारे नेता सिर्फ़ कहने में यकीन करते हैं करने मे नहीं. भगत सिंह जैसा कोई नहीं बन सकता. लेकिन हम नौजवान पीढ़ी उनको अपना गुरु मानकर भारत की दिशा बदल सकते हैं. आज भगत  सिंह के विचारों की प्रासंगिकता पहले से भी ज़्यादा है.

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